Recent Posts

रविवार, 22 दिसंबर 2013

0 टिप्पणियाँ

निर्बलता

जगत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की निर्बलता अवश्य रहती है , जैसे कोई बहुत तेज़ी से दौड़ नहीं पाता तो कोई अधिक भार नहीं उठा पता , कोई आसान से रोग से पीड़ित रहता है तो कोई पढे हुए पाठो को स्मरण में नहीं रख पता , ऐसे अनेको उद्धरण और भी है क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते है जिसे सबकुछ प्राप्त हो और हम उस जीवन की एक निर्बलता को जीवन का केंद्र मान कर चलते है इस कारणवश हृदय में क्रोध और दुःख रहता है सदा निर्बलता मनुष्य को जन्म से अथवा संजोग से प्राप्त होती है परन्तु उस निर्बलता को मनुष्य का मन अपनी मर्यादा बना लेता है किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते है जो अपने श्रम से उस निर्बलता को पराजित कर देते है  क्या भेद है उनमे और अन्य लोगो में क्या आपने कभी विचार किया है ? सरल सा उत्तर है इसका जो व्यक्ति निर्बलता से पराजय नहीं होता जो पुरुषाद करने का साहस रखता है हृदय में  वो निर्बलता को पार कर जाता है अर्थात निर्बलता अवश्य ईश्वर देता है परन्तु मर्यादा , मर्यादा मनुष्य का मन ही निर्मित करता है। …

स्वयं विचार कीजिये। ……… 
( ) Read more
0 टिप्पणियाँ

भय

मनुष्य के हृदय में भय का साम्राज्य रहता है सदा , कभी संपत्ति के नाश का भय कभी अपमान का भय कभी अपनों से छूट जानो का भय इसीलिए भय का होना सबको स्वाभाविक ही लगता है , क्या कभी विचार किया है जो स्तिथि अथवा वास्तु भय को जन्म देती है क्या वही से वास्तव में दुःख आता है,  नहीं ऐसा तोह कोई नियम नहीं और सबका अनुभव तो यह बताता है कि भय धारण  करने से भविष्य के दुःख का निवारण नहीं होता भय केवल आने वाले दुःख कि कल्पनामात्र ही है ,वास्तविकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है  तो क्या यह जानते हुए भी की भय कुछ और नहीं केवल कल्पनामात्र ही है , इससे मुक्त होकर निर्भय बन पाना क्या बहुत कठिन है ।

अवश्य विचार कीजियेगा....।  
( ) Read more
0 टिप्पणियाँ

अन्धकार

पूर्वजो की इक्छा , आशा, महत्वकांक्षा ,क्रोध , बैर , प्रतिशोध यही सब आने वाली पीड़ी कि धरोहर बनते है । माता पिता तोह अपने संतानो को देना तोह चाहते है समस्त विश्व का सुख पर देते है अपनी पीडाओ की संपत्ति ,  देना चाहते है अमृत पर साथ ही साथ विष का घड़ा भी भर देते है , आप विचार कीजिये आपने अपने संतानो को क्या दिया अवश्य प्रेम , प्यार , संपत्ति आदि दी है पर क्या साथ ही साथ उसके मन को मेल से भर देने वाले पूर्ववृहों नहीं दिए, अच्छे बुरे की पूर्वनिर्धारित व्याख्या नहीं दी । व्यक्ति का व्यक्ति के साथ , समाज का समाजो के साथ , राष्ट्र का राष्ट्रो के साथ संघर्ष क्या इन्ही पूर्ववृहों  से निर्मित नहीं होते , हत्या मृतु जन्मपात क्या इन्ही पूर्ववृहों से नहीं जन्मे अर्थात माता पिता अपने संतानो को जन्म के साथ मृत्यु का दान भी देते है , प्रेम के प्रकाश के साथ साथ घृणा का अन्धकार भी देते है और अन्धकार मन का हो , हृदय का हो या वास्तविक हो उसे केवल भय प्राप्त होता है केवाल भय ।

 स्वयं विचार किजिये…। 
( ) Read more

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

0 टिप्पणियाँ

पिता और संतान

पिता सदा ही अपने संतान के सुख की कामना करते है , उनके भविष्य की चिंता करते रहते है इसी कारन वस् सदा ही अपने संतानो के भविष्य का मार्ग स्वयं ही निस्चित करने का प्रयत्न करते रहते है । जिस मार्ग पर पिता स्वयं चला है जिस मार्ग के कंकर पत्थर को स्वयं देखा है ,मार्ग कि छाया मार्ग की धुप को स्वयं जाना है उसी मार्ग पर उसका पुत्र भी चले यही इक्छा रहती है हर पिता की , निसंदे: उत्तम भावना है यह किन्तु ३ प्रष्न के ऊपर विचार करना हम भूल ही जाते है। .... कौन से प्रष्न। .?
प्रथम प्रष्न क्या समय के साथ प्रत्येक मार्ग बदल नहीं जाते?क्या समय सदा ही नई चुनौतियों को लेकर नहीं आता ? तो फिर बीते हुए समय क अनुभव नई पीड़ी को किस प्रकार लाभ दे सकते है ?
दूसरा प्रष्न क्या प्रत्येक संतान अपने माता पिता की छवि होता है, हा संतानो को संस्कार तो अवश्य ही माता पिता देते है किन्तु भीतर कि क्षमता तो ईश्वर ही देते है तोह जिस मार्ग पर पिता को सफलता मिली है विश्वास है कि उसी मार्ग पर उसके संतानो को भी सफलता और सुख प्राप्त होगा ?
तीसरा प्रष्न क्या जीवन के संगर्ष और चुनौतिया लाभकारी नहीं होती क्या प्रत्येक नया प्रष्न एक उत्तर का द्वार नहीं खोलता तोह फिर संतानो को नए नए संघर्षो , प्रष्नो और चुनौतियों से दूर रखना यह उनके लिए लाभ करना कहलायेगा या हानि पहुचाना ? अर्थात जिस प्रकार संतान के भविष्य के निर्माण करने से पहले उसके चरित्र का निर्माण करना आवस्यक है वैसे ही संतानो के जीवन का मार्ग निश्चित करने से पहले उन्हें नए संघर्षो के साथ जूझने के लिए मनोबल व ज्ञान देना अधिक लाभदायक नहीं होगा ?

स्वयं विचार कीजिये। …… 
( ) Read more
Best viewed on firefox 5+
Copyright © Design by Dadang Herdiana